जयप्रकाश बहुगुणा
उत्तरकाशी
विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर गंगा विश्व धरोहर मंच की पहल पर संस्कृत महाविद्यालय में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें वन्यजीव संरक्षण के उद्देश्यों चर्चा की गई। संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ. राधे श्याम खंडूड़ी ने कहा कि हमें हमारे वन्य जीवन को अमूल्य संपत्ति के रूप में देखना होगा। उनके बचाव के बारे में सोचना तभी संभव है अगर हम न केवल वन्य जीवन को बचाए बल्कि उन्हें पनपने का अवसर भी प्रदान करें। यदि आवश्यक हो तो हमें उन्हें उचित वातावरण में रखकर उनकी संख्या बढ़ाने में योगदान देना होगा। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल ने कहा कि वन्य-जीव प्रकृति द्वारा उपहार के रूप में प्रदान किए गए हैं इसलिए हमारा भी कर्तव्य है कि हम सब मिलकर इसको सहेज कर रखें। वन्यजीव से मतलब उन जानवरों से है जो पालतू नहीं हैं, वो सिर्फ जंगली जानवर हैं और जंगल में रहते हैं। इन्सान अपनी जीवनशैली और आधुनिकता में उन्नति कर रहा है। पेड़ों और जंगलों की भारी कटाई से वन्यजीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं। देखा जाये तो आज मनुष्य अपने कर्मों से वन्यजीव प्रजातियों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार हैं। किसी भी मानव वन्यजीव की प्रजाति को अपने आनंद के उद्देश्य से मार रहे हैं। अवैध रूप से शिकार करना भी एक दंडनीय अपराध है। वन्यजीव संरक्षण का तात्पर्य है कि हम सबको जानवरों और पौधों की प्रजातियों का संरक्षण करना है क्योंकि वो विलुप्त होने की कगार पर हैं। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य डा. डी. पी. नौटियाल, प्राध्यापक लवलेश दूबे एवं भगवती प्रसाद उनियाल ने वेदों में वन्य जीवों के महत्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर सुभाष भट्ट, अनमोल, कपिल देव तथा शुभम सहित छात्र मौजूद थे।