– भैया दूज को यमुनोत्री पहुंचकर बहनें करती हैं भाईयों की लंबी उम्र की कामना
– इसी दिन शीतकाल के छह माह के लिए बंद किये जाते हैं यमुनोत्री धाम के कपाट
उत्तराखंड एक्सप्रेस ब्यूरो
यमुनोत्री (उत्तरकाशी)
भैयादूज के पावन पर्व पर यमुनोत्री धाम में यमुना नदी में स्नान करने एवं पूजा-अर्चना का अपना विशेष महत्व है। मान्यता है कि भैयादूज अर्थात यम द्वितीया के इस पर्व पर यमुना में स्नान व पूजा-अर्चना करने से यम यातना से मुक्ति मिलती है। इस दिन देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यमुनोत्री धाम में पूजा-अर्चना तथा यमुना में स्नान करने पहुंचते हैं।
भैयादूज का दिन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है। यह पर्व रक्षा बंधन के पर्व से भी पहले से सनातनी संस्कृति का हिस्सा रहा है। इस दिन भाई-बहन यमुनोत्री धाम पहुंचकर भाई एवं बहन अपने-अपने रिश्तों को जन्म-जन्मांतर तक बरकरार रखने की एवं उनके जीवन में खुशहाली की कामना करते हैं। प्रेमी का प्रतीक भाई दूज का पर्व यहां प्रत्येक वर्ष परंपरागत ढंग से मनाया जाता है। भैयादूज के पावन पर्व पर यमुनोत्री धाम में यम यातना से मुक्ति के लिए श्रद्धालु यमुनोत्री धाम में पहुंचकर यमुना में स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं। इसदिन एक दूसरे की मंगल कामनाओं के लिए श्रद्धालु मां यमुना से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि सूर्य ने तीनों लोकों के हित के लिए यमुनोत्री धाम में यमुना को पृथ्वी पर अवतरित कराया। उत्तर वाहिनी यमुना में स्नान करने का विशेष महत्व है और यमुनोत्री धाम में यमुना उत्तर वाहिनी है। जो समस्त पापों से विश्व को मुक्ति दिलाने वाली है। मान्यता है कि यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान दिया है कि सनातन जगत में भैया दूज अर्थात कार्तिक शुक्ल द्वितीय को यम अपने सभी कार्यों को छोड़कर अपनी बहन यमुना को मिलने यमुनोत्री धाम पहुंचते हैं। तब से जो भाई-बहन इस पर्व के अवसर पर यमुनोत्री धाम में पहुंचते हैं और यमुना में स्नान कर इस पर्व को मनाते हैं, उनके रिश्ते जन्म-जन्मांतर के लिए भाई-बहन के प्रेम के बंधन में बंध जाते हैं। यमुनोत्री तीर्थ पुरोहित सुरेश उनियाल, जगमोहन उनियाल का कहना है कि यमुनोत्री धाम में यम द्वितीया के इस पर्व पर स्नान व पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। इस दिन यमुना में स्नान करने से यम यातना से मुक्ति मिलती है।
यमुना के मायके में स्वागत की तैयारियां पूरी
यमुनोत्री धाम के कपाट रविवार को विधि विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए जायेंगे। इसके बाद अगले छह माह तक मां यमुना अपने शीतकालीन प्रवास खुशीमठ (खरसाली) में रहती है। यमुना के स्वागत के लिए खुशीमठ में तीर्थ पुरोहितों तथा श्रद्धालुओं द्वारा सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी है। यमुना के पहुंचने पर खुशीमठ में इस दिन त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर ग्रामीण धूमधाम से लोक संगीत, लोकनृत्य रासो एवं तांदी नृत्य कार्यक्रम आयोजित कर मां यमुना का भव्य स्वागत करते हैं।
यमुना को लेने शनिदेव पहुंचते हैं यमुनोत्री धाम
भैया दूज को यमुनोत्री धाम के कपाट बंद होने से पहले खुशीमठ से शनिदेव की डोली यमुना को लेने यमुनोत्री धाम पहुंचेगी। रविवार को शनिदेव की डोली खुशीमठ से सुबह 08 बजे ढोल-नगाड़े के साथ यमुनोत्री धाम के लिए रवाना होगी तथा करीब 10 बजे यमुनोत्री धाम पहुंचेगी। जहां वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन, पूजा-अर्चना की जाएगी। जिसके बाद दोपहर को अभिजीत मुहूर्त पर सवा बारह बजे यमुनोत्री धाम के कपाट बंद किए जाएंगे और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ शनि देव की डोली की अगुवाई में मां यमुना की उत्सव डोली खुशीमठ के लिए प्रस्थान करेगी। जहां श्रद्धालु मां यमुना का बड़े उत्साह के साथ भव्य स्वागत करेंगे तथा यमुना मंदिर में यमुना को स्थापित किया जाएगा। जिसके बाद अगले छह माह तक शीतकाल में यमुना के दर्शन देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं खुशीमठ (खरसाली) में करेंगे।