महाविधालय में संस्कृत विभाग की द्विदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का हुआ समापन

उत्तराखंड Express ब्यूरो

कर्णप्रयाग /चमोली

डॉ. शिवानन्द नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा में वैश्विक चेतना विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। 20 फरवरी 2025को प्रारम्भ हुए इस सेमिनार में विभिन्न राज्यों से प्रतिभागियों ने शोध पत्र का वाचन किया। कार्य्रकम में समापन सत्र सहित कुल आठ सत्र आयोजित किए गए।जिसमें झारखंड, पंजाब, दिल्ली विश्वविद्यालय, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों से विभिन्न शोधार्थियों एवं सहायक प्राध्यापकों ने अपने शोध पत्र का वाचन किया। समापन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो. राणा ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम छात्रों को शोध की ओर उन्मुख करेंगे। समापन सत्र के अध्यक्ष महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. वी. एन. खाली ने इलियट जैसे पाश्चात्य विद्वानों ने भारतीय ज्ञान परम्परा से ग्रहण कर किस प्रकार अपने ग्रंथों में उसका उपयोग किया है, इस पर प्रकाश डाला। डॉ. पंकज कुमार ने सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को जल्दी ही स्थापित करना परमावश्यक है जिससे मानव जाति का वांछित कल्याण हो सके। कार्यक्रम संयोजक डॉ. मृगांक मलासी ने दो दिनों हुए सेमिनार में सभी सत्रों का सार सभी के समक्ष रखा। मुख्य वक्ता डॉ. अंथवाल ने ऐतिहासिक परम्परा के परिदृश्य में अपनी बात रखी। वहीं सारस्वत अतिथि डॉ. वी.पी. भट्ट ने वनस्पतियों के परिदृश्य में वैदिक वांग्मय के आलोक में तथ्यों को रखा। विशिष्ट अतिथि डॉ. एम एस कण्डारी ने कहा भारतीय ज्ञान परंपरा की जड़े इतनी मजबूत हैं कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विदेशियों ने गीता से प्रेरणा लेकर कार्य किया। समापन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ अखिलेश कुकरेती ने कहा की भारत की प्रतिष्ठा संस्कृत और संस्कृति है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मदन लाल शर्मा ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक, डॉ. रमेश चन्द्र भट्ट, डॉ. भाल चन्द्र नेगी, डॉ. चन्दावती, डॉ. कविता पाठक, डॉ. हरीश बहुगुणा, डॉ. हरीश रतूड़ी, डॉ. पूनम, डॉ. दीप सिंह, डॉ. चन्द्रमोहन, डॉ. स्वाति, डॉ. हिना, श्री रवींद्र नेगी, डॉ. शालिनी सैनी, डॉ. नरेंद्र पंघाल सहित समस्त प्राध्यापक, विद्यार्थी एवं विभिन्न्न शोधार्थी उपस्थित रहे।

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