दिनेश शास्त्री
उर्गम घाटी/चमोली
भ्रष्टाचार किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, यह उदघोषणा जितनी बार दोहराई जाती है, उतनी बार उम्मीद जगती है कि शायद उत्तराखंड की बेहद खूबसूरत और शांत घाटी “कल्प गंगा घाटी” के दिन बहुरेंगे। पिछले कुछ वर्षों से लगातार यह भी बराबर सुनने में आ रहा है कि 21वीं सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड का होगा, यह वाक्य भी उम्मीदों का पहाड़ निर्मित करता है लेकिन जब हेलंग से कल्पेश्वर तक की दो दशक से ज्यादा समय से बन रही एक अदद सड़क को देखते हैं तो सब कुछ भ्रम लगता है। या तो यह घोषणाएं यहां के लिए नहीं हैं या फिर हाथी के दांत केवल दिखावे के लिए हैं। लोकभाषा में कहें तो यह “तिमला के फूल” हैं। हेलंग से कल्पेश्वर धाम तक की सड़क का जिम्मा फिलहाल प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के पोखरी डिविजन के पास है किंतु जिस अंदाज में इस डिविजन के इंजीनियर अपना “कौशल” दिखा रहे हैं उसे देख कर अभी हाल में कश्मीर में बने चिनाब ब्रिज को बनाने वाले इंजीनियर शरमा जाएं। कई बार तो लगता है कि सरकार भी बड़ी उदारता से पैसे दे रही है, ठेकेदार, इंजीनियर भी खूब मन से काम कर रहे हैं, किंतु इस घाटी के लोग ही अभिशप्त हैं या फिर बाबा कल्पनाथ ही नहीं चाहते कि श्रद्धालु उन तक बिना किसी परेशानी के पहुंच जाएं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्यों हेलंग कल्पेश्वर सड़क प्रदेश की अन्य सड़कों की तरह नहीं बन सकी?
पिछले सात वर्षों से हर जनवरी माह में कल्पेश्वर की यात्रा में यही अनुभव हुआ कि सड़क निर्माण के जो मापदंड हैं, वह इस सड़क पर लागू नहीं होते। जनवरी के अंतिम सप्ताह में इस सड़क को बनवाने का जिम्मा संभाले अधिशासी अभियंता ने कहा था कि हमें 14 करोड़ रुपए मिल गए हैं और जल्दी ही सड़क बेहतर हो जाएगी। अब शायद वह अभियंता पोखरी में हों या नहीं लेकिन सड़क आज भी वैसी ही है, बल्कि कई जगहों पर पहले से ज्यादा खराब हो गई है। अलबत्ता इसकी चौड़ाई जरूर कई जगहों पर बढ़ा दी गई है। मौजूदा हालात में इसे एक बड़े अहसान के रूप में देखा जाना चाहिए। वैसे बहाने बहुत हैं कि यहां जलविद्युत परियोजना की वजह से स्लाइडिंग जोन है, आदि आदि, लेकिन स्लाइडिंग जोन तो राजमार्ग पर भी हैं, वहां उनका बड़ी शिद्दत से उपचार किया गया है, तभी तो आलवेदर रोड का नाम दिया होगा, फिर हेलंग कल्पेश्वर सड़क ही क्यों आधी अधूरी रह गई, यह एक बड़ा सवाल है।
कल्पगंगा घाटी के विकास की आकांक्षा में अपना यौवन होम करने वाले लक्ष्मण सिंह नेगी इस मोटर मार्ग की लंबी कहानी को विस्तार से बताते हैं तो लगता है कि हम शायद किसी और ग्रह के निवासी हैं, जिनकी बात सुनी तो जाती है लेकिन समझी नहीं जाती या फिर परिगणित श्रेणी में रखी जाती हैं। सड़क की कहानी शुरू करने से पहले लक्ष्मण सिंह नेगी के बारे में बताना जरूरी लगता है। पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में गढ़वाल विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी योग्यता के बल पर वे चाहते तो अन्य युवाओं की तरह बाहर निकल कर अपना बेहतर कैरियर बना सकते थे लेकिन अत्यंत प्रतिभाशाली लक्ष्मण सिंह नेगी ने क्षेत्रीय विकास की आकांक्षा की पूर्ति के लिए संघर्ष का रास्ता चुना। उन्होंने अपने लोगों के बीच रह कर जंगल बचाए ही नहीं, सैकड़ों हेक्टेयर क्षेत्र में लोगों की मदद से नए जंगल विकसित किए, उन्होंने चीड़ के नहीं बल्कि बांज बुरांश के जंगल उगाए, जनदेश स्वैच्छिक संस्था के माध्यम से अपने लोगों की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए एक नहीं अनेक प्रकल्प शुरू किए, लोक संस्कृति के लिए काम किया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी लक्ष्मण सिंह नेगी ने जो कुछ किया, आज सबके सामने है। अगर किसी मामले में विफलता गिनाई जाए तो उनके हिस्से में यही विफलता आज तक है कि इस सड़क की दशा नहीं सुधरी जबकि सर्वाधिक संघर्ष उन्होंने इसी के लिए किया। अलबत्ता उनके संघर्ष का जज्बा अब भी कम नहीं हुआ है और वे आज भी जद्दोजहद कर रहे हैं, इससे भरोसा होता है कि इस संघर्ष में अंततः उन्हें देर सबेर सफलता मिल जाएगी।
बहरहाल अब सड़क की कहानी शुरू की जाए।इस सड़क के लिए संघर्ष आज से नहीं, उत्तर प्रदेश के दौर से चल रहा है। तत्कालीन उत्तर प्रदेश की संयुक्त सचिव लोक निर्माण विभाग सरला साहनी ने 1982 में हेलंग – उर्गम मोटर मार्ग हल्का वाहन की सैद्धांतिक स्वीकृति दी थी, किंतु लोक निर्माण विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा बिना सड़क बनाये हेलंग से उर्गम तक हल्का वाहन मार्ग चालू दिखा दिया गया। यह सब कागजों में हुआ, जैसे तब हुआ, कुछ कुछ उत्तराखंड बनने के बाद भी होता आ रहा है। उसके बाद लोक निर्माण विभाग द्वारा कई बार इसका सर्वेक्षण किया जाता रहा। 2001 में भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत प्रथम चरण में यह मार्ग शामिल किया गया, किंतु इसका काम प्रारंभ नहीं हो पाया। इस पर उर्गम घाटी के लोगों ने उर्गम रामलीला मैदान में 32 दिनों तक क्रमिक धरना प्रदर्शन किया। इस धरना प्रदर्शन के परिणामस्वरूप बदरीनाथ क्षेत्र के तत्कालीन विधायक अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने क्षेत्र की मांगों पर विचार करने के लिए वार्ता की। उसके बाद आंदोलन समाप्त किया गया। 2002 में अब तक कागजों में बनी सड़क निर्माण कार्य धरातल पर प्रारंभ हो पाया। उसके बाद 2007 तक सलना गांव तक यानी कुल सात किलोमीटर तक कट पाई। उसी दौरान आपदा के कारण सड़क बह गई। तत्कालीन उत्तराखंड सरकार ने इस सड़क के निर्माण का ठेका मेगा टेक नामक कंपनी को दिया था। यह कंपनी आधा अधूरा काम छोड़ कर 2011 में चलती बनी। न कोई जांच हुई और न कार्रवाई। जैसे आज सुना जा रहा है कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, तब इस तरह की बातें भी नहीं होती थी, लिहाजा मेगा टेक कंपनी से वसूली की बात भी खारिज हो गई। अभी हाल में थराली के पास एक वैली ब्रिज ध्वस्त हो गया तो सरकार ने ऐलान कर दिया है कि ठेकेदार से वसूली होगी। यह फार्मूला हेलंग उर्गम मोटर मार्ग पर लागू नहीं हुआ।
नेगी बताते हैं कि सड़क निर्माण पूरा करवाने के लिए उर्गम क्षेत्र की जनता ने फिर आंदोलन शुरू किया। आखिरकार राज्य सरकार को 12 करोड़ 20 लाख रुपए फिर स्वीकृत करने पड़े और इसका टेंडर जितेंद्र कुमार के नाम के ठेकेदार को दिया गया। पहले की रस्म निभाते हुए नए ठेकेदार ने भी इस काम को आधा अधूरा रखा और पूर्ववत खेल चलता रहा। एक बार फिर वर्ष 2012 में कल्प क्षेत्र विकास आंदोलन के बैनर के नीचे 48 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया गया। इसमें मुख्य मांग थी कि ल्यारी गांव से मोटर मार्ग को कल्पेश्वर तक जोड़ा जाए। सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव बनाया और चार किलोमीटर सड़क की स्वीकृति मिली। इस दौरान हेलंग – उर्गम सड़क के लिए आपदा मद से भी लाखों रुपए स्वीकृत होते रहे। वर्ष 2015-16 में 88 लाख रुपया क्षतिग्रस्त मार्ग की मरम्मत के लिए स्वीकृत हुए। उसके बाद वर्ष 2019-20 में एक करोड़ 88 लाख रुपए की फिर वित्तीय स्वीकृति मिली, जिसमें सड़क के क्षतिग्रस्त भाग का ट्रीटमेंट का कार्य होना था। लोक निर्माण विभाग पोखरी डिविजन द्वारा यह कार्य भी नहीं किया गया। बाद में तीसरे चरण के लिए इस सड़क का चयन हुआ, जिसमें 14 करोड़ रुपए की स्वीकृति मिली। पिछले दो वर्षों से पूरी सड़क 12 किलोमीटर को जगह-जगह को चौड़ा तो किया गया किंतु जगह-जगह मलबा फेंक दिया गया है। ग्रामीणों ने कई बार जिलाधिकारी से शिकायत की लेकिन न तो ठेकेदार और न ही किसी इंजीनियर का बाल बांका हुआ। अभी भी कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं हो पा रही है तो समझा जा सकता है कि सरकार और जनता की इच्छा पर कौन भारी पड़ रहा है।
नेगी आगे बताते हैं कि वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का कार्यक्रम गौरा देवी पर्यावरण प्रकृति पर्यटन विकास मेले में आने का हुआ किंतु मौसम खराब होने के कारण वह नहीं आ पाए, उस समय भी तत्कालीन एसडीएम जोशीमठ के द्वारा इस सड़क के लिए कार्रवाई की गई, किंतु सड़क 36 से भी अधिक जगह पर मानक के अनुसार नहीं बनी थी, लिहाजा परिवहन मानकों की खामी के चलते सड़क पास नहीं हो पाई। आज भी स्थिति वैसी ही बनी हुई है। इस तरह अकेले उत्तराखंड बनने के बाद 50 करोड़ रुपए से अधिक धनराशि खर्च होने के बाद भी हेलंग – ल्यारी तक सड़क ठीक से नहीं बन पाई है। लोग अपनी जान जोखिम में डालकर इस मार्ग पर सफर करते हैं। हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु भी कल्पेश्वर धाम आते हैं। क्षेत्रीय जनता द्वारा कई बार मुख्यमंत्री, विधायक, जिला अधिकारी, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सांसदों के समक्ष भी इस अभागी सड़क के बारे में फरियाद करते आ रहे हैं, फिर भी यह कार्य आज भी आधा अधूरा पड़ा हुआ है।
लक्ष्मण सिंह नेगी और इलाके के तमाम लोगों से बात करने पर एक बात तो यह पक्की हुई कि यह सड़क लोगों के काम बेशक नहीं आ पाई लेकिन ठेकेदार और इंजीनियरों के लिए कामधेनु जरूर सिद्ध हो गई है, वे जब चाहें, इसका बजट बनवा दें और जब चाहें हाथ खड़े कर दें। लोगों की आशा, आकांक्षा और उम्मीदों से उनका सरोकार तो है नहीं किंतु आश्चर्य तब भी होता है, जब जीरो टॉलरेंस के दौर में भी अंधेरगर्दी बरकरार दिखती है। सवाल अभी भी अनुत्तरित ही है कि अभी कितने और लोग इस सड़क के बहाने मालामाल होंगे और यहां के लोग तथा श्रद्धालु कब तक जान जोखिम में डाल कर यात्रा करने के लिए अभिशप्त रहेंगे?