उत्तराखंड Express ब्यूरो
देहरादून(जोगीवाला)
साईं सृजन पटल के माध्यम से नई पीढ़ी को उतराखंड की समृद्ध परंपरा ‘औखांण ‘ से परिचित कराया जा जायेगा। साईं सृजन पटल के संयोजक डा.के.एल.तलवाड़ ने बताया कि वर्तमान में यद्यपि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन तीव्रता से हुआ है तथा ‘औखांण ‘ (लोक-कहावत) सृजन हासिये पर चला गया है तथापि ध्यान रखने योग्य है कि चाहे शहरी जीवन हो या ग्रामीण जीवन ‘औखांण ‘के शाब्दिक अर्थ और भावार्थ को समझना तथा अनुभव और उदाहरणों के आधार पर इनका सृजन करना हर युग, क्षेत्र, समाज, संस्कृति व परंपरा के लिए सर्वकालिक प्रासंगिक है। डा.शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग चमोली के इतिहास विषय के शिक्षक डा.वेणीराम अन्थवाल ने ‘साईं सृजन पटल’ के पुस्तकालय को स्वलिखित अनमोल पुस्तक भेंट की है जिसका शीर्षक है- ‘उत्तराखंड के लोक-जीवन की समृद्ध परंपरा ‘औखांण ‘। इस पुस्तक के माध्यम से पटल ने एक नवीन पहल करते हुए प्रत्येक रविवार को छात्र-छात्राओं को औखांण (लोक-कहावत) के अर्थ और भावार्थ से परिचित करने का बीड़ा उठाया है। प्रथम रविवार को छात्राओं को कुछ औखांण से परिचित कराया गया। उदाहरणार्थ- ‘बुढ्यों कु व्बल्यों अर औलों कु स्वाद बल बाद म औंदू’ अर्थात वृद्ध व्यक्ति की कही बात तथा आंवले का स्वाद बाद में आता है।, ‘दानक ग्वरु क बल दांत न खुर’ अर्थात बिना परिश्रम के जो वस्तु प्राप्त हो वह बेकार ही होती है।,’कत्था बल काणी अर रात ब्याणी ‘ अर्थात बेकार कहानी में पूरी रात गुजर गई।’ और ‘हरिद्वार चपाई गुदड़ी अर क्यदार पिटी भैंसू अर्थात दण्ड और पुरस्कार का निर्धारण निष्पक्ष भाव से करना चाहिए। पुस्तक में 833 औखांण संकलित है।