जयप्रकाश बहुगुणा
उत्तरकाशी
उत्तरकाशी रामलीला मैदान में अष्टोत्तरशत श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन साधु संतों सहित श्रद्धालुओं की जनसैलाब उमड़ पड़ा। भागवत के विश्व प्रसिद्ध कथा वाचक डॉ. श्यामसुंदर पाराशर महाराज ने गोपियों का प्रेम, रास लीला, मथुरा गमन, कंस वध, रुक्मिणी विवाह की कथा सुनायी। श्रद्धालुओं ने भक्ति व आनंद से कथा सुनी। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद, ऊधव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुकमणी विवाह के प्रसंग के साथ बताया भी था। उन्होंने कथा के माध्यम से बताया कि कंस के अत्याचार से पृथ्वी त्राह त्राह जब करने लगी तब लोग भगवान से गुहार लगाने लगे। तब कृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों ही होना निश्चित है। इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया, लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा। 11 वर्ष की अल्प आयु में कंस ने अपने प्रमुख अकरुर के द्वारा मल्ल युद्ध के बहाने कृष्ण, बलराम को मथुरा बुलवाकर शक्तिशाली योद्धा और पागल हाथियों से कुचलवाकर मारने का प्रयास किया, लेकिन वह सभी श्रीकृष्ण और बलराम के हाथों मारे गए और अंत में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिला दी। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को जहां कारागार से मुक्त कराया, वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया।उन्होंने बताया कि रुकमणी जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। वह विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी, जो विष्णु रूपी श्रीकृष्ण से विवाह करने को इच्छुक थी। लेकिन रुकमणी जी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे, जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंध और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था, जैसे ही यह खबर रुकमणी को पता चली तो उन्होंने ब्राह्मण के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और काफी संघर्ष हुआ युद्ध के बाद अंततः श्री कृष्ण रुकमणी से विवाह करने में सफल रहे। कल कथा का अंतिम दिवस कथा का समय 11 बजे से 2 बजे तक रहेगा। कथा देवडोलियां आकर्षण का केन्द्र बनी सभी श्रद्धालु एक ही स्थान पर अपने स्थानीय देवी देवताओं के दर्शन प्राप्त कर रहे हैं। विश्वनाथ मंदिर में हवनात्मक यज्ञ व विष्णु याग में यज्ञ यजमानों सहित अनेकों लोग उपस्थित थे। इस अवसर पर अष्टादश महापुराण समिति के अध्यक्ष हरि सिंह राणा, महामंत्री रामगोपाल पैन्यूली, व्यवस्थापक घनानंद नौटियाल, संयोजक प्रेम सिंह पंवार, कोषाध्यक्ष जीतवर सिंह नेगी, यजमान के रूप में डॉ. एस डी सकलानी,अरविन्द कुडि़याल, डॉ. प्रेम पोखरियाल, गोविंद सिंह राणा, विनोद कंडियाल, राजेन्द्र सेमवाल, महादेव गगाडी़, कुमारी दिव्या फगवाड़ा, इंजिनियर जगबीर सिंह राणा, अधीक्षक अभियंता उत्तरकाशी महिपाल सिंह, सुदेश कुकरेती, प्रेम सिंह चौहान, रामकृष्ण नौटियाल, राजेन्द्र पंवार, विद्या दत्त नौटियाल, सम्पूर्णा नंद सेमवाल, प्रताप पोखरियाल, दिनेश पंवार, प्रकाश बिजल्वाण, सहित समिति के पदाधिकारी जगमोहन सिंह चौहान, नत्थी सिंह रावत, प्रथम सिंह वर्तवाल, प्रमोद सिंह कंडियाल, गजेन्द्र सिंह मटूड़ा, शम्भू भट्ट, सुरेश सेमवाल, पंडित रविन्द्र नौटियाल, राजेन्द्र गंगाड़ी आदि उपस्थित थे। नित्य 108 भागवताचार्यों द्वारा प्रतिदिन भागवत का मूल पाठ किया जा रहा है। सभी भागवताचार्यों को मुख्य कथा व्यास डॉ. श्याम सुंदर पाराशर जी द्वारा सम्मानित भी किया गया।